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यात्रा वृत्तांत >> आखिरी चट्टान तक

आखिरी चट्टान तक

मोहन राकेश

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7214
आईएसबीएन :9789355189332

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बहुआयामी रचनाकार मोहन राकेश का यात्रावृत्तान्त

रंग-ओ-बू


बम्बई। विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन। स्टेशन पर उतरकर यह नहीं लगा कि दो साल बाद वहाँ आया हूँ। ऐसे लगा जैसे कि वहीं रहता हूँ, दादर से आया हूँ, रोज़ ही इस तरह आता हूँ और वहाँ की ज़िन्दगी से बुरी तरह ऊबा हुआ हूँ। स्टेशन पर ही बम्बई के जीवन की पूरी झलक दिखाई दे गयी-सूखे-मुरझाये चेहरे, बेहद जल्दबाज़ी और कोई खोयी हुई चीज़ ढूँढ़ने का-सा हताश भाव। वहाँ आकर पहला सवाल मन में यही आया कि वहाँ क्यों आया हूँ? एक चीज़ जिससे उलझन और बढ़ने लगी, वह थी मछली की गन्ध। विक्टोरिया टर्मिनस के सबर्बन भाग में इतनी मछलियाँ उतरी थीं (मतलब, टोकरियों में भरी वहाँ उतारी गयी थीं) कि मेन स्टेशन के चाय स्टाल पर चाय पीते हुए मुझे लगता रहा कि वह गन्ध मेरी चाय में से आ रही है। मैं चाय आधी भी नहीं पी सका।

बस में बैठा, तो वहाँ भी पास ही कहीं से वह गन्ध आ रही थी। कुछ आश्चर्य हुआ क्योंकि बसों में मछली की टोकरियाँ ले जाने की इजाज़त नहीं है। पर आश्चर्य की कोई बात नहीं थी। गन्ध मेरे साथ बैठी मत्स्यगन्धा नवयुवती के शरीर में से आ रही थी।

नहीं जानता कि बम्बई पहुँचते ही, सहसा मन वहाँ से चल देने को क्यों होने लगा। सोचकर आया था कि वहाँ आठ-दस दिन रुकूँगा, पुराने दोस्तों से मिलूँगा और फिर आगे की यात्रा पर चलूँगा। पर एक ही दोस्त से मिल लेने के बाद किसी दूसरे से मिलने जाने को मन नहीं हुआ। वह दोस्त, डी.पी., नैशनल स्टैंडर्ड में काम करता था। मैं उसके दफ्तर में पहुँचा, तो मुझे देखकर उसके चेहरे पर वैसा ही भाव आया जैसा रोज़ दिखाई देनेवाले किसी चेहरे को देखकर आ सकता है। उसने सरसरी तौर पर मुझसे बैठने को कहा, बिना यह पूछे कि मैं कुछ पियूँगा या नहीं, नौकर से चाय लाने को कह दिया, और टेलीफोन पर सट्टा बाजार के भाव पूछता रहा।

वहाँ भी जाने कहाँ से मछली की गन्ध आ रही थी। समझ में नहीं आया कि एक अख़बार के दफ़्तर में मछलियाँ कहाँ हो सकती हैं। जब डी.पी. ने टेलीफ़ोन का रिसीवर रखा, तो मैंने पहली बात उससे यही पूछी कि मछली की गन्ध कहाँ से आ रही है? उसने मेरे सवाल को ज़रा महत्त्व नहीं दिया और उसी तरह सरसरी तौर पर कहा कि मछली की गन्ध आ रही है, तो समुद्र में से ही आ रही होगी क्योंकि समुद्र बहुत पास है।

डी.पी. से मिलकर मुझे लगा कि मैंने बम्बई के सब लोगों से एक साथ मिल लिया है। उसके दफ़्तर से बाहर आया तो पूरी शाम मेरे पास ख़ाली थी-पर मैं और किसी से मिलने नहीं गया। उसकी बजाय एक्वेरियम में जाकर मछलियाँ देखता रहा। शीशे के केसों में सैकड़ों तरह की मछलियाँ इठलाती-इतराती तैर रहा थीं। मुझे उनके नाम याद नहीं-केवल रंगों और लचक की ही कुछ याद है। एक नर्तकी के शरीर से कहीं ज़्यादा लचकती डेढ़-डेढ़ दो-दो फ़ुट की चितकबरी मछलियाँ, अपने मुँह से निकले रेशमी डोरों के सहारे करतब करती-सी नाटे क़द की चौड़ी मछलियाँ, गिरोह बाँधकर एक दिशा से दूसररी दिशा में जाती नाख़ून- नाख़ून जितनी मछलियाँ और राम-नाम के उच्चारण की तरह मुँह खोलती और बन्द करती भगत मछलियाँ। मैं एक्वेरियम बन्द होने तक मछलियों और केंकड़ों का देखता वहीं घूमता रहा। पहले फूलों और तितलियों को देखकर ही सोचा करता था कि इतने-इतने रंगों की सृष्टि करनेवाली, शक्ति के पास कितनी सूक्ष्म सौन्दर्य-दृष्टि होगी। पर नाख़ून-नाख़ून भर की मछलियों के शरीर में रंगों की योजना देखकर तो जैसे उस विषय में सोचने की शक्ति हा जाता रही...।

एक्वेरियम के दरवाज़े बन्द हो जाने के बाद आधी रात तक मैरीन ड्राइव के पुश्ते पर बैठा समुद्र की उफनती लहरों को देखता रहा। मन हो रहा था कि मैं भी उस समय मछलियों क साथ-साथ उन लहरों में बह सकूँ, इधर से उधर धकेला जा सकूँ और अपने चारों ओर पानी की उस शक्ति को महसूस कर सकूँ जिसका अनुमान चट्टानों पर होते हर आघात से हो रहा था। कितनी ही देर मैं जहाँ बैठा देखता रहा, और जब मैरीन ड्राइव बिल्कुल सुनसान हो गया, तो चुपचाप उठकर वहाँ से चला आया।

 

* * *

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    अनुक्रम

  1. प्रकाशकीय
  2. समर्पण
  3. वांडर लास्ट
  4. दिशाहीन दिशा
  5. अब्दुल जब्बार पठान
  6. नया आरम्भ
  7. रंग-ओ-बू
  8. पीछे की डोरियाँ
  9. मनुष्य की एक जाति
  10. लाइटर, बीड़ी और दार्शनिकता
  11. चलता जीवन
  12. वास्को से पंजिम तक
  13. सौ साल का गुलाम
  14. मूर्तियों का व्यापारी
  15. आगे की पंक्तियाँ
  16. बदलते रंगों में
  17. हुसैनी
  18. समुद्र-तट का होटल
  19. पंजाबी भाई
  20. मलबार
  21. बिखरे केन्द्र
  22. कॉफ़ी, इनसान और कुत्ते
  23. बस-यात्रा की साँझ
  24. सुरक्षित कोना
  25. भास्कर कुरुप
  26. यूँ ही भटकते हुए
  27. पानी के मोड़
  28. कोवलम्
  29. आख़िरी चट्टान

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